क्या एहसास है तमको?
तुम्हारी तिश्नगी
लुभाती है मेरे मन को,
सुलगाती है मेरे तन को
इठलाती, इतराती,
मदमस्त यौवन मे
हिचकोले खाती
अंगड़ाईयाँ लेती
तुम्हारी तिश्नगी
लुभाती है मेरे मन को
स्थिर करती मेरे चंचल चितवन को,
तुम्हारी तिश्नगी लुभाती है मेरे मन को,
तुम्हारा यूँ मेरे जिस्म को छूना
कुछ तो रूहानी एहसास दिलाता है।
तेरा मुझको यूँ चूमना,
बाँहों में भरना,
सीने से लगाना,
अपना सा लगता है।
मेरे सपनों में तुम्हारा होना,
मेरी दुआओं में तुम्हारा होना,
सबूत ही तो है
मेरा तुम्हारा होना।।
क्या एहसास है तमको?
© दिशी मेहरोत्रा
No comments:
Post a Comment