है धुआं - धुआं सा चारों ओर
पर यह है धुंध की चाधर ओढ़े,
झिलमिलाते सितारों की सिलवटों के सायें में
धरती को समेटता विशालकाय आकाश।।
पर्वत से ऊचा, महासागर से गहरा,
फिर भी रहती है धरा प्यासी
अम्बर से मिलन को..
कहीं आग है, तो कहीं राग है..
इसकी हर पुकार में सिर्फ प्यार है।।
छलता है अपनी बारिश की बूंदों से अम्बर धरा को,
नादान! वो समझती है स्नेह इनको,
हिचकोले मार, खिलखिलाती है फसल के रूप में।।
बेचारी! इतना भी नहीं समझती,
दरिया और सागर का मिलन नहीं है इसकी झोली में,
फिर भी, मासूम इतनी,
कि अम्बर को ही समझती है अपना प्रियतम।।
है मुर्ख दुनिया की नज़र में,
जानती है, लोग बावरी कहते हैं
पर वो मानती है,
क्षितिज (horizon) में ही है उसका असली मिलन अपने प्रियवर से ।।
ज्ञात है धरती को अपनी शख्शियत,
करती है राख में खाक़ सभी को..
बनाती है अपने आकाश के लिये रोज़ इक नया तारा,
फिर भी है प्यास उसको, अपने मिलान की ।।
दिशि मेहरोत्रा
पर यह है धुंध की चाधर ओढ़े,
झिलमिलाते सितारों की सिलवटों के सायें में
धरती को समेटता विशालकाय आकाश।।
पर्वत से ऊचा, महासागर से गहरा,
फिर भी रहती है धरा प्यासी
अम्बर से मिलन को..
कहीं आग है, तो कहीं राग है..
इसकी हर पुकार में सिर्फ प्यार है।।
छलता है अपनी बारिश की बूंदों से अम्बर धरा को,
नादान! वो समझती है स्नेह इनको,
हिचकोले मार, खिलखिलाती है फसल के रूप में।।
बेचारी! इतना भी नहीं समझती,
दरिया और सागर का मिलन नहीं है इसकी झोली में,
फिर भी, मासूम इतनी,
कि अम्बर को ही समझती है अपना प्रियतम।।
है मुर्ख दुनिया की नज़र में,
जानती है, लोग बावरी कहते हैं
पर वो मानती है,
क्षितिज (horizon) में ही है उसका असली मिलन अपने प्रियवर से ।।
ज्ञात है धरती को अपनी शख्शियत,
करती है राख में खाक़ सभी को..
बनाती है अपने आकाश के लिये रोज़ इक नया तारा,
फिर भी है प्यास उसको, अपने मिलान की ।।
दिशि मेहरोत्रा
awesome...really
ReplyDeleteThank u :-)
Deletemast
ReplyDeletenice..
ReplyDeleteCongrats!
ReplyDelete:) :)
DeleteBeautiful.
ReplyDeleteThank You!
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