Thursday 29 August 2013

मैं और मेरी तन्हाईयाँ

मैं और मेरी तन्हाई अकसर ये बातें करते हैं।
तुम न मिलते तो मेरा क्या होता ?

कौन मुझे सम्भालता ?  रखता मेरा खयाल? 
और कौन करता मेरे बचपने से प्यार ?

अगर तुम न होते. . .
मुझे जीने के तरीके सिखाता कौन?

मैं और मेरी तन्हाई अकसर ये बातें करते हैं।
तुम न मिलते तो मेरा क्या होता ?
 

मेरी रूह को न होती तेरे करीब आने की बेचैनी,
तेरी एक झलक पाने को मेरी आँखें यूँ तरसा न करतीं. . . 

लगती हूँ खुद को संवारने जब भी होने को होती हूँ तेरे रूबरू… 
याद कर के तुझे यूंही मुस्कुराती हूँ मैं दर्पण के सामने।
तेरी अठखेलियाँ कर देती हैं मेरी आंख विच उजियारा।।
मैं और मेरी तन्हाई अकसर ये बातें करते हैं।
तुम न मिलते तो मेरा क्या होता ?

मेरे नैनों की बेसब्री को ठग लेता तेरी बातों का मोहजाल,
कर उद्वेलित मेरे मन के भीतर छिपी अनजानी तृष्णा।
सींच लेता तेरा प्यार  मेरी बुनी इच्छाओं का हर मायाजाल।। 

मैं और मेरी तन्हाईयाँ अकसर ये बातें करते हैं…।। 
तुम न मिलते तो मेरा क्या होता ?

Saturday 24 August 2013

कशिश

तेरी आँखों में ये जो कशिश है, मुझे ले जाती है तेरे और भी करीब। 

 

मेरे दिल को मिलता है सुकून, जब होता है तेरी बाँहों में मेरा वजूद। 


अजब सी बेकरारी होती है

धड़कनों को जब होती हैं तुझसे दूर।


मेरी ज़िन्दगी में कुछ इस तरह घुल जाओ कि,

आइय्ना भी न पहचाने मेरे अक्स को,

गर खुशबु तेरी न समायी हो मुझमें। 


वो मेरी इबादतों में तेरा जिक्र जला देता है उस परवरदिगार को,

कहता है तेरा रब मैं न हूँ अब।


दिशी मेहरोत्रा