Saturday, 24 August 2013

कशिश

तेरी आँखों में ये जो कशिश है, मुझे ले जाती है तेरे और भी करीब। 

 

मेरे दिल को मिलता है सुकून, जब होता है तेरी बाँहों में मेरा वजूद। 


अजब सी बेकरारी होती है

धड़कनों को जब होती हैं तुझसे दूर।


मेरी ज़िन्दगी में कुछ इस तरह घुल जाओ कि,

आइय्ना भी न पहचाने मेरे अक्स को,

गर खुशबु तेरी न समायी हो मुझमें। 


वो मेरी इबादतों में तेरा जिक्र जला देता है उस परवरदिगार को,

कहता है तेरा रब मैं न हूँ अब।


दिशी मेहरोत्रा


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